शुरुआत में ही एक बात तय कर लीजिए. अपने जिस्म पर शर्म करना गलत है. कोई शख्स अपने जिस्म के लिए जो चुनता है, उसका सम्मान किया जाना चाहिए. लेकिन…चंद-एक किलो ज्यादा वजन होना और इतना ज्यादा होना कि सेहत के लिए ही खतरा बन जाए, इन दोनों में फर्क किया जाना जरूरी है.
आज के माहौल में, जिस्म के आकार को लेकर की गई कोई भी बात अपमानजनक समझी जा सकती है. लेकिन आपके लिए जानना जरूरी है कि “मोटा और तंदुरुस्त भी” होना कभी संभव नहीं है.
तो, अपने वजन पर ध्यान दीजिए!
पहले बॉडी मॉस इंडेक्स (BMI). इसे आपके शरीर के वजन (किलोग्राम में) को आपकी लंबाई (मीटर में) के वर्ग से भाग देकर निकाला जाता था और जिसे आपके ओवरवेट होने या नहीं होने का पता लगाने का सबसे सटीक फार्मूला माना जाता था. आपके वजन को सामान्य माना जाता अगर आपका बॉडी मॉस 18.5 से 25 Kg/m2 के बीच है.
लेकिन कुछ मामलों में यह पाया गया कि BMI सटीक नहीं है. उदाहरण के लिए, एक एथलीट या सघन मांसपेशियों वाले शख्स का बॉडी मॉस भी वही हो सकता है जो किसी मोटे शख्स का होगा. इसलिए जरूरी है कि अपना सही वजन जानने के लिए प्रोफेशनल कंसल्टेंट की राय लें. एक और बात जो जानना जरूरी है, वह यह है कि सभी ओवरवेट लोग मोटे नहीं होते, लेकिन सभी मोटे लोग ओवरवेट होते हैं. अधिकता की मात्रा के अनुसार, दोनों ही शरीर के लिए समान रूप से नुकसानदायक हो सकते हैं.
मोटापा भगाइए, बीमारी और शारीरिक समस्याएं खुद भाग जाएंगी
जो लोग मोटे होते हैं उन्हें हार्ट और जोड़ों की समस्या होने की ज्यादा आशंका रहती है. सबसे डराने वाली बात यह है कि ऐसे लोगों को हाई ब्लड प्रेशर या शुगर लेवल के बढ़ने जैसे अन्य लक्षणों के सामने आए बिना भी हार्ट फेल या अटैक (दौरे पड़ने) की आशंका ज्यादा होती है.
यह नतीजे साल 2017 में यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम द्वारा किए गए एक शोध में सामने आए हैं. अध्ययन में साल 1995 से 2015 के दौरान 35 लाख लोगों पर नजर रखी गई. इनमें से 61,000 लोगों को धमनियों से संबंधित हृदय रोग होने का ज्यादा खतरा था.
जब बात बच्चों के स्वास्थ्य की आती है तो ओवरवेट और मोटे बच्चों को बचपन में और बड़े होने पर क्रॉनिक बीमारियों की ज्यादा संभावना होती है. इनमें हार्ट डिजीज, स्ट्रोक, टाइप-2 डायबिटीज, अस्थमा, स्लीप एप्निया (नींद में सांस थम जाना), यकृत स्टीटोसिस और कई प्रकार के कैंसर शामिल हैं.
और सामाजिक अलगाव को भी मत भूलें जो कि मोटापे के कारण झेलना पड़ता है. मैक्स हॉस्पिटल की तरफ से राजधानी में कराए एक सर्वे में पता चला कि मोटापा किस तरह बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है.
मोटापे से जुड़ी शरीर के वाहिका तंत्र की स्थिति से पैदा होने वाली हाई ब्लड प्रेशर और हाई ब्लड कोलेस्ट्रोल जैसी समस्याएं बच्चों में भी बढ़ती जा रही हैं. यही स्थिति टाइप-2 डायबिटीज की भी है.
मोटापे पर शर्मिंदगी क्यों…
अपनी बॉडी को लेकर शर्मिंदगी नहीं चोनी चाहिए. अगर लीना डुन्हम और परिणिति चोपड़ा जैसी सेलेब्रेटीज वजन घटाती हैं तो यह सुडौल शरीर के विचार के खिलाफ नहीं है. इसी के साथ यह भी उनकी छरहरी काया का ये मतलब नहीं कि ऐसा शरीर ही पसंद किया जाता है. परिणिति चोपड़ा ने एक इंटरव्यू में अपने वजन घटाने को लेकर इस बात को बिल्कुल सही लफ्जों में बयान किया हैः
अगर आप अपने शरीर के साथ सहज नहीं हैं तो इसके लिए कुछ कीजिए. अगर आप सहज हैं तो इसे ऐसे ही रहने दीजिए. दूसरों को टिप्पणी करने का कोई हक नहीं है.परिणीति चोपड़ा
अगर कोई सेहत का सर्वोच्च स्तर हासिल करने के लिए मेहनत करता है (जो उन्हें छरहरा भी बनाएगा) तो इस कोशिश को सलाम कीजिए.
समस्या शायद लफ्जों के चुनाव में है. कसे हुए जिस्म की फिटनेस और मजबूती की तारीफ की जानी चाहिए ना इसकी खूबसूरती के लिए.
खाने की बीमारी की कोई वजह होती है, खासकर बचपन में यह होती है तो इस पर ध्यान देने की जरूरत है. पूरी दुनिया के लिए जरूरी है कि तंदुरुस्त शरीर की सही कारणों से तारीफ की जाए, और इसे हासिल करने के लिए दीर्घकालीन प्रयास किए जाएं.