दावा
सोशल मीडिया पर तमाम तरह के संदेशों के बीच एक और संदेश हमारे पास आया, जिसमें जेनेटिकली मॉडिफाइड फूड (GMF) को बेहद जहरीला बताया गया है. इस तरह के फूड आइटम्स के तमाम नुकसान बताते हुए अपील की गई है कि इस प्रक्रिया के इस्तेमाल से उगाए गए स्वीट कॉर्न, टमाटर जैसी चीजों का सेवन बिल्कुल न करें.
जीएम फूड को लेकर फॉरवर्ड किया जा रहा मैसेज:
क्या हैं जेनेटिकली मॉडिफाइड फूड?
सबसे पहले ये जान लीजिए कि जेनेटिकली मॉडिफाइड फूड या जीएम फूड क्या होता है.
आनुवांशिक रूप से संशोधित या जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) फूड ऐसी फसलों और जानवरों से मिले उत्पाद हैं, जिनके डीएनए में बदलाव किया गया हो. जेनेटिकल मॉडिफाइड बीजों से तैयार फसलों को जेनेटिकली मॉडिफाइड क्रॉप कहते हैं.
जैव तकनीक बीज के डीएनए यानी जैविक संरचना में बदलाव कर उनमें ऐसी क्षमता ला देता है, जिससे उन पर कीटाणुओं, रोगों और विपरीत पर्यावरण का असर नहीं होता.
जेनेटिकली मॉडिफाइड फूड पर शुरुआत से ही सवाल उठाए जाते रहे हैं.
लेकिन इस कदर डराने वाले मैसेज में कितनी सच्चाई है, एक-एक कर ये समझते हैं:
क्या US में GM फूड्स को जहरीला घोषित किया गया है?
इस मैसेज में सबसे पहले ये लिखा गया है कि अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर जेनेटिकली मॉडिफाइड फूड को बेहद जहरीला घोषित किया है. लेकिन असल में ऐसी कोई खबर सामने नहीं आई है, यहां तक कि एपी की एक खबर के मुताबिक हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक आदेश पर हस्ताक्षर किया है, ताकि फूड सप्लाई में जेनेटिकली इंजीनियर्ड प्लांट्स की एंट्री आसान हो सके.
क्या जहरीले और कैंसरकारक हैं GM फूड?
अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक आज बाजार में मिलने वाले जेनेटिकली इंजीनियर्ड प्लांट के फूड नॉन-जीई फूड की तरह ही सुरक्षित हैं.
मैक्स हेल्थकेयर में सीनियर गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ अश्विनी सेतिया इस मैसेज पर कहते हैं कि अगर जेनेटिकली मॉडिफाइड फूड इतने टॉक्सिक होते, तो मार्केट में क्यों आ जाते. फसलों और उनके उत्पाद के गुणों को बढ़ाने के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग किया जाता है.
इस मैसेज में जीएम फूड से ट्यूमर की बीमारियों की बात पर फोर्टिस हॉस्पिटल, शालीमार बाग में कैंसर स्पेशलिस्ट डॉ जसकरण सेठी बताते हैं कि अब तक ऐसा कुछ साबित नहीं हो सका है.
फिलहाल कोई भी निर्णायक सबूत नहीं हैं कि जेनेटिकली मॉडिफाइड फूड (GMF) कैंसर के खतरे को बढ़ाता है.डॉ सेठी
डॉ सेतिया भी कहते हैं कि कैंसर के मामले बढ़े हैं, लेकिन किस चीज से कैंसर हो रहा है, इसको लेकर कारण और प्रभाव जैसा कोई पुख्ता संबंध साबित नहीं हो सका है.
हालांकि डॉ सेठी बताते हैं कि जीएम फूड को लेकर काफी विवाद होता रहा है.
जीएम फूड को लेकर विवाद
जीएम फूड के नुकसान को लेकर साल 2012 में फ्रांस के काएन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक गिल्स एरिक सेरालिनी का एक पेपर पब्लिश हुआ था. इसमें सेरालिनी की टीम ने पाया था कि जिन चूहों को दो साल तक जेनेटिकली मॉडिफाइड ग्लाइफोसेट-रेजिस्टेंट मक्के खिलाए गए, उनमें ट्यूमर डेवलप हुए और उनकी जल्द ही मौत हो गई. हालांकि वैज्ञानिकों और विनियामक एजेंसियों ने बाद में निष्कर्ष निकाला कि अध्ययन का डिजाइन त्रुटिपूर्ण था और इसके निष्कर्षों को सही नहीं माना जा सकता. यहां तक कहा गया कि स्टडी में जो चूहे थे, उनमें एक उम्र के बाद ट्यूमर विकसित हो जाते हैं.
ज्यादातर स्टडीज में जीएम फूड और नॉन जीएम फूड खाने के निष्कर्ष में यही कहा गया कि जीएम फूड भी उतने ही सुरक्षित हैं, जितने नॉन जीएम फूड.
मई 2016 में, नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, इंजीनियरिंग और मेडिसिन के एक रिसर्च आर्टिकल, जिसे नेशनल एकेडमीज प्रेस (यूएस) की ओर से पब्लिश किया गया, उसमें कहा गया था कि ऐसा कोई सबूत नहीं है कि जेनेटिकली मॉडिफाइड फूड स्वास्थ्य या पर्यावरणीय नुकसान से जुड़ा हुआ है. हमने ये मैसेज चेन्नई के एनजीओ ट्रस्ट एम.एस स्वामिनाथन रिसर्च फाउंडेशन (MSSRF) को भेजा, जहां से इसी रिपोर्ट का हवाला दिया गया.
इस रिसर्च आर्टिकल में बताया गया कि जेनेटिकली इंजीनियर्ड क्रॉप्स पर बनी कमिटी ने GE (Genetically Engineered) फूड खाने के कारण सेहत पर सीधे किसी बुरे असर से जुड़ा सबूत नहीं पाया.
जीएम फूड से जुड़ी स्वास्थ्य चिंताओं में से एक ये है कि इससे एलर्जी हो सकती है. इसकी चर्चा करते हुए डॉ सेतिया कहते हैं:
इस पर रिसर्च की जा रही है कि जेनेटिकली मॉडिफाइड व्हीट कहीं सीलिएक डिजीज का कारण तो नहीं है, जिसके मामले भारत में बढ़ते देखे जा रहे हैं. लेकिन अभी कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता और ऐसा नहीं कहा जा सकता कि इन फूड आइटम को खाने से ट्यूमर बन जाएगा या इससे मौत हो जाएगी. ये मैसेज बहुत ज्यादा डराने वाला है.
दुनिया में जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलें
दुनिया में जितनी भी जीएम फसलें पैदा हो रही हैं, उसमें सोयाबीन, मक्का, कपास, कैनोला (सरसों) का हिस्सा 99% है. यानी यही चार मुख्य फसलें हैं, जो जीएम फसलों के तहत दुनिया में उगाई जा रही हैं. बाकी 1% में आलू, पपीता, बैंगन जैसी फसलें हैं, जिन्हें कुछ देश उगा रहे हैं.
अमेरिकी फूड एजेंसी FDA के मुताबिक जेनेटिकली मॉडिफाइड फूड उनके फूड सप्लाई में 1990 से आए हैं. कॉटन, कॉर्न और सोयाबीन अमेरिका में उगाए जा रहे सबसे आम GE फसल हैं. साल 2012 में जितने भी सोयाबीन लगाए गए, उनमें 93 फीसदी GE सोयाबीन थे और कुल कॉर्न की फसलों में 88 फीसदी GE कॉर्न की फसल थी.
जेनेटिकली मॉडिफाइड फूड आइटम्स की सेफ्टी FDA उसी तरह रेगुलेट करता है, जिस तरह बाकी फूड आइटम्स को रेगुलेट किया जाता है.
जेनेटिकली मॉडिफाइड फूड को लेकर हर देश के अपने नियम हैं. जैसे भारत में जीएम फसल उगाने की अनुमति नहीं है. यहां सिर्फ जीएम कॉटन सीड की खेती को ही मंजूरी दी गई है. फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट, 2006 के सेक्शन 22 के मुताबिक जेनेटिकली मॉडिफाइड फूड के मैन्यूफैक्चर, डिस्ट्रीब्यूशन, बिक्री या आयात की मंजूरी नहीं है.
भारत में जीएम फूड्स
ये जानने के लिए कि क्या भारतीय बाजारों में जीएम फूड्स मौजूद हैं या नहीं, सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरमेंट (CSE) ने 65 आयातित और घरेलू तौर पर उत्पादित प्रोसेस्ड फूड के सैंपल लिए. इनमें सोया, कॉर्न, सरसों या कॉटनसीड के इंग्रेडिएंट मौजूद थे.
46 फीसदी आयातित फूड प्रोडक्ट्स जीएम पॉजिटिव थे, जिन्हें कनाडा, नीदरलैंड, थाइलैंड, यूएई और यूएस से आयात किया गया था.
वहीं भारत में तैयार 17 फीसदी फूड सैंपल जीएम पॉजिटिव पाए गए क्योंकि इनमें कॉटनसीड ऑयल का इस्तेमाल किया गया था.
20 जीएम पॉजिटिव सैंपल में से 13 ने लेबल पर इसका जिक्र नहीं किया था. कुछ ब्रांड ने कोई जीएम इंग्रेडिएंट न होने की बात कही थी, लेकिन उन्हें जीएम पॉजिटिव पाया गया था.
मैसेज सही या गलत?
अब तक जितनी स्टडीज हुई हैं, उनमें जीएम फूड खाने से नुकसान को लेकर कोई पुख्ता सबूत सामने नहीं आए हैं. हालांकि इस पर एक विस्तृत अध्ययन न होने की बात भी कही गई है. लेकिन मैसेज में जो बातें कही गई हैं, उनकी कहीं पुष्टि नहीं की गई है.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक दुनिया के जिन देशों में जीएम फसलें उगाई जा रही हैं, वहां की मानक एजेंसियों ने कहा है, ऐसे प्रमाण नहीं मिले हैं कि इन फसलों का स्वास्थ्य पर कोई बुरा प्रभाव पड़ रहा हो. इंटरनेशनल मार्केट में मौजूद जीएम फूड्स सेफ्टी एसेस्मेंट में पास हुए हैं और इनसे इंसानों की सेहत पर कोई खतरा नहीं सामने आया है.
हमने जिन विशेषज्ञों से बात की, उनके मुताबिक ये मैसेज बहुत ज्यादा डराने वाला है, जिसके अभी कोई प्रमाण नहीं हैं.