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कैसे तैयार हुआ एक सस्ता और यूजर फ्रेंडली पोर्टेबल वेंटिलेटर?

इस डिवाइस के कारण कई साल से एडमिट मरीजों को घर भेजना मुमकिन हो सका है.

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हॉस्पिटल में पांच साल से ज्यादा समय तक रहना, एक वॉर्ड में पूरा दिन गुजार देना, रोजाना वही चेहरे, बाहरी दुनिया से कोई ताल्लुक नहीं और इस तरह दिन-रात पूरा वक्त कटना.

एम्स के न्यूरोसर्जरी वॉर्ड में 19 साल के सचिन के साथ और भी मरीजों ने उसी क्यूबिकल में सालों गुजार दिए. उनके पैरेंट्स और परिवार की जिंदगी उनकी देखभाल करते हुए वहीं रुक गई. उनके घर न जा पाने की सिर्फ एक वजह है कि उन्हें लंबे समय तक वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत है.

अब एक सस्ते पोर्टेबल और यूजर फ्रेंडली पोर्टेबल वेंटिलेटर के कारण सचिन को पांच साल बाद घर भेजना मुमकिन हो सका है. इसे दुनिया का सबसे सस्ता वेंटिलेटर बताया जा रहा है, जो सामान्य वेंटिलेटर की तरह ही काम करता है. खास बात ये है कि ये एंड्रॉयड फोन से चलता है.

एम्स में न्यूरोसर्जन डॉ दीपक अग्रवाल और 26 साल के रोबोटिक्स साइंटिस्ट प्रोफेसर दिवाकर वैश्य ने किफायती वेंटिलेटर बनाया है.

प्रोफेसर वैश्य बताते हैं, "अगर मैं डेढ़-दो साल पहले की बात करूं, तो ये एक पेशेंट, सचिन को डिस्चार्ज करने के साथ शुरू हुआ. हम सचिन के पास इकट्ठे हुए और कहा 'ये एम्स में पिछले 4 साल से है और हमें इसे डिस्चार्ज करने की जरूरत है. हमें ऐसी डिवाइस बनाने की जरूरत है जिसे वो घर ले जा सके.'"

एक चीज जो हमने महसूस की वो ये कि ज्यादातर पेशेंट और उनके रिश्तेदारों के पास स्मार्टफोन होता है. हम कुछ ऐसा बनाना चाहते थे, जिसे इस्तेमाल करना आसान हो, इसलिए हमने एक ऐप डिजाइन किया.
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इसकी कीमत 50 हजार से कम है. इसको चलाने की कीमत ट्यूबलाइट जलाने के बराबर है.

भारत में किफायती वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं है. सबसे सस्ते पोर्टेबल वेंटिलेटर की कीमत करीब 4-5 लाख रुपए है. उनमें से ज्यादातर बहुत भारी होते हैं, टेक्निकल दक्षता की जरूरत होती है और यूजर फ्रेंडली नहीं होते. हमारा वेंटिलेटर इन्हीं कमियों को दूर करता है.
डॉ दीपक अग्रवाल

सामान्य वेंटिलेटर में ऑक्सीजन सप्लाई, मेडिकल एयर की जरूरत होती है, जिससे इसे चलाने के लिए ज्यादा संसाधनों की जरूरत होती है. जबकि AgVa हेल्थकेयर के पोर्टेबल वेंटिलेटर कमरे की हवा से चल सकते हैं.

सचिन के मामले में इस वेंटिलेटर से उसके परिवार की जिंदगी बेहतर हुई है. सचिन साल 2014 से एम्स में एडमिट था. परिवार में अकेले सचिन के पिता ही कमाते हैं. रेगुलर हॉस्पिटल जाने की वजह से उन्हें अपनी दुकान बंद करनी पड़ती थी.

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सचिन को घर लाने के बाद अब वो अपने बेटे का ख्याल भी रख सकते हैं और अपना घर भी चला सकते हैं. सचिन के पिता किशन लाल कहते हैं, 'सचिन भी घर आकर खुश है क्योंकि वो अपनी बहन और हम सबके साथ है.'

इस डिवाइस को बनाने वाले लोगों का मकसद भारत के हेल्थकेयर क्षेत्र में संसाधनों की कमी को दूर करना है. डॉ अग्रवाल कहते हैं, 'यहां बहुत ज्यादा कमी है और मुझे लगता है कि भारत में करीब लाखों वेंटिलेटर की तुरंत जरूरत है. यहां हमारा वेंटिलेटर बेहतर है क्योंकि इसे घर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इसे वॉर्ड में इस्तेमाल किया जा सकता है. इसे आईसीयू में एडवांस्ड वेंटिलेटर के तौर पर यूज किया जा सकता है और हां इसे एंबुलेंस में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.'

हालांकि इस तरह की मेडिकल डिवाइस के लिए कोई रेगुलेटरी बॉडी और गाइडलाइन नहीं है. इसलिए इस डिवाइस को विशेष मंजूरी नहीं मिली है, लेकिन ये ISO सर्टिफाइड है. FDA से मंजूरी पाने की कोशिश भी की जा रही है.

कैमरापर्सन: नितिन चोपड़ा, अभिषेक रंजन और सुमित बडोला

वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान

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